प्रादेशिक नाट्य समारोह 2024-25
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ (संस्कृति विभाग, उ0प्र0) द्वारा दिनांक 17 से 19 मार्च, 2024 तक तीन दिवसीय प्रादेशिक नाट्य समारोह 2024-25 का आयोजन संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह में किया गया।
समारोह की प्रथम संध्या दिनांक 17 मार्च, 2024 को सर्वप्रथम अकादमी अध्यक्ष प्रो.जयंत खोत, उपाध्यक्ष विभा सिंह, निदेशक डॉ. शोभित कुमार नाहर ने दीप प्रज्वलन के उपरांत मुख्य अतिथि वरिष्ठ रंगकर्मी ललित सिंह पोखरिया का सम्मान किया। इस अवसर पर वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ. अनिल रस्तोगी उपस्थित रहे। अकादमी अध्यक्ष प्रो.जयंत खोत ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में बताया कि अकादमी सम्भागीय नाट्य समारोह से लेकर प्रादेशिक नाट्य समारोह तक का आयोजन कर निरंतर नाट्य परंपरा का संवर्धन कर रही है। उन्होंने बताया कि सम्भागीय नाट्य समारोह और राज्य नाट्य समारोह का आयोजन बीते चार दशकों से कराया जा रहा है। पूर्व में सम्भागीय के बाद राज्य नाट्य समारोह का आयोजन किया जाता था, किन्तु अब इसे परिवर्तित करके प्रादेशिक नाट्य समारोह कर दिया गया है। जैसे संगीत प्रतियोगिता में सम्भागीय संगीत प्रतियोगिता और प्रादेशिक संगीत प्रतियोगिता होती है उसी प्रकार से नाटक में भी सम्भागीय और प्रादेशिक नाट्य समारोह कर दिया गया है। इस वित्तीय वर्ष में सम्भागीय नाट्य समारोह के लिए तीस आवेदन प्राप्त हुए थे जिसमें से चयन हेतु गठित समिति समिति द्वारा 12 नाटकों का चयन किया गया। जिसमें से शाहजहाँपुर, बिजनौर और बरेली में चार-चार नाटकों का मंचन कराया गया। उन तीनों सम्भाग से चयनित नाटकों में शाहजहाँपुर से आखिरी वसंत, बिजनौर से रश्मिरथी और बरेली से भुवनेश्वर-दर-भुवनेश्वर का चयन स्थानीय ऑब्जर्वर और दर्शक दीर्घा द्वारा दिए गए निर्णय के आधार पर किया गया अकादमी का प्रयास है कि अहिन्दी भाषी प्रदेशों से हिन्दी नाटकों को आमंत्रित करके तीन से चार दिवसीय नाट्य समारोह का आयोजन करवाया जाए।
तदोपरान्त देवरिया, सलेमपुर की नाट्य संस्था सांस्कृतिक संगम, की नाट्य प्रस्तुति “रश्मिरथी” का मंचन मानवेन्द्र कुमार त्रिपाठी के सफल निर्देशन में किया गया। यह रचना हिन्दी के मशहूर साहित्यकार रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कालजयी रचना रश्मिरथी पर आधारित है। इसका रूपांतरण अनिल मेहरोत्रा ने किया है। नाटक ‘रश्मिरथी’ यह सन्देश देता है कि जन्म-अवैधता से कर्म की वैधता नष्ट नहीं होती। अपने कर्मों से मनुष्य मृत्यु-पूर्व जन्म में ही एक और जन्म ले लेता है। अन्ततः मनुष्य का मूल्यांकन उसके वंश से नहीं, उसके आचरण और कर्म से ही किया जाना चाहिए। ‘‘रश्मिरथी’’ जिसका अर्थ ‘‘सूर्यकिरण रूपी रथ का सवार’’ है, हिन्दी के महान कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित प्रसिद्ध खण्डकाव्य है। यह साल 1952 में प्रकाशित हुआ था। जिसमें 7 सर्ग हैं। इसमें कर्ण को, महाभारत के कथानक से ऊपर उठाकर, उसे नैतिकता और विश्वसनीयता के नवीन धरातल पर ला कर, गौरव से विभूषित किया गया है। “रश्मिरथी” में “दिनकर” ने सारे सामाजिक और पारिवारिक सम्बन्धों को नये सिरे से परख कर पेश किया है फिर चाहे गुरु-शिष्य सम्बन्ध हो या फिर अविवाहित मातृत्व को दर्शाया गया है।
मंच पर कर्ण की भूमिका मानवेन्द्र त्रिपाठी, कृष्ण की राज मौर्य, परशुराम की रवीन्द्र रंगधर, कुंती व सूत्रधार एक की आकांक्षा विक्ट्री, द्रोणाचार्य की प्रमोद कुमार सिंह, कृपाचार्य व इन्द्र की नवनीत जायसवाल, दुर्याेधन की मनीष श्रीवास्तव, युधिष्ठिर की चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव, भीम की अजय ठाकुर, अर्जुन की आलोक सिंह, नकुल की उपहार मिश्रा, सहदेव की सागर चौधरी, शल्य की राधेश्याम, धृतराष्ट्र की हरीश शर्मा, विदुर की विजय सिंह, वृद्ध याचक व सैनिक की शिवा श्रीवास्तव, सैनिक दो की प्रदीप सिंह, सूत्रधार दो व परिचारिका का अनुप्रिया चौहान, सूत्रधार तीन की रितिका सिंह, सूत्रधार चार और द्रौपदी की बबीता शर्मा और शिष्य की भूमिका रितिका सिंह, अनुप्रिया चौहान, सोमनाथ, उपहार व सागर ने अदा कर प्रशंसा हासिल की। मंच पार्श्व में रंगदीपन का दायित्व ऋषभ दास, पार्श्व ध्वनि का दुर्गेश कुमार, रूप सज्जा का राधेश्याम, वस्त्र विन्यास का रवीन्द्र रंगधर, मंच सज्जा का शिवा, रितिका, उपहार, सेट डिजाइन का राज मौर्य, रितिका सिंह, आलोक सिंह, आकांक्षा ने अदा कर नाटक के आकर्षण को बढ़ाया।
नाट्य प्रस्तुति के उपरांत अकादमी के अध्यक्ष प्रो.जयंत खोत, उपाध्यक्ष विभा सिंह, निदेशक डॉ. शोभित कुमार नाहर ने नाटक “रश्मिरथी” के समस्त कलाकारों को पुष्प देकर सम्मानित किया वहीं अध्यक्ष प्रो. जयंत खोत ने नाटक के निर्देशक मानवेन्द्र कुमार त्रिपाठी को तरु और शॉल देकर सम्मानित किया।






उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ (संस्कृति विभाग, उ0प्र0) द्वारा त्रिदिवसीय प्रादेशिक नाट्य समारोह की दूसरी शाम मंगलवार 18 मार्च, 2025 को दर्पण लखनऊ की प्रस्तुति “आखिरी वसंत” का मंचन शुभदीप राहा के सराहनीय लेखन और निर्देशन में गोमती नगर स्थित अकादमी के संत गाडगे जी महाराज प्रेक्षागृह में किया गया। यह नाटक, विदेश में जाकर बस गए बच्चों के बाद हिन्दुस्तान में एकाकी रह गए वयोवृद्ध अभिभावकों की परिस्थितियों को, आधुनिक बाजारवाद के परिवेश में प्रभावी रूप से पेश करता है। नाटक संदेश देता है कि रिश्ते खून के कारण नहीं घनिष्ठ होते बल्कि भावनाएं उसे घनिष्ठ बनाती हैं।
इस नाट्य संध्या में मुख्य अतिथि प्रमुख सचिव, आयुष, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन, रंजन कुमार के साथ अकादमी अध्यक्ष प्रो.जयंत खोत, उपाध्यक्ष विभा सिंह, निदेशक डॉ. शोभित कुमार नाहर ने दीप प्रज्वलन किया। इस अवसर पर अकादमी अध्यक्ष प्रो.जयंत खोत ने मुख्य अतिथि को और अकादमी निदेशक ने अकादमी के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित राष्ट्रीय ललित कला अकादमी-क्षेत्रीय केन्द्र के सचिव, डॉ. देवेन्द्र त्रिपाठी को तरु भेंट किया। प्रस्तुति के उपरांत नाट्य निदेशक सहित कलाकारों का अभिनंदन भी किया गया।
नाटक एक बुज़ुर्ग दंपत्ति सुधीर और गीता के साथ शुरू होता है जो अपने बेटे रणदीप के साथ अपने झगड़े को निपटाने की कोशिश कर रहे हैं जो कनाडा में अपनी पत्नी वंदना के साथ बस गया है। नाटक जब आगे बढ़ता है तो दर्शकों को पता चलता है कि पांच साल पहले संपत्ति को लेकर झगड़ा हुआ था। अब सुधीर और गीता किसी तरह रणदीप और वंदना को वापस भारत बुलाना चाहते हैं। दूसरी ओर कहानी में मोड़ आता है जब सुधीर और गीता के घर में जेल से भागा हुआ एक अपराधी राधू पहुंच जाता है। इसी बीच भावनाओं पर हावी होते बाजारवाद को दर्शाते दो किराए के बेटा-बहु भी घर पहुंच जाते हैं। नाटक के अंत में परिस्थितियों का मारा अपराधी राधू, सच्चे प्यार की तलाश में अंजान, वृद्ध दम्पत्ति को अपना अभिभावक बना लेता है।
मंच पर सुधीर की भूमिका वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ. अनिल रस्तोगी, गीता की भूमिका चित्रा मोहन ने, वंदना की अलका विवेक, रणदीप की विकास श्रीवास्तव, राधू की संजय देगलुरकर और मंजीत सिंह की वंश श्रीवास्तव ने अदा कर प्रशंसा हासिल की। मंच पार्श्व में सैयद लारैब और सुमित श्रीवास्तव ने मंच सामग्री प्रबंधन, मधुसूदन ने मंच निर्माण, रोजी दुबे ने वेशभूषा, देवाशीष मिश्रा ने प्रकाश परिकल्पना एवं संचालन, मनोज वर्मा ने मुख सज्जा, विवेक श्रीवास्तव ने संगीत संचालन, राधेश्याम सोनी ने प्रस्तुति संयोजन और विद्या सागर गुप्त ने प्रस्तुति का दायित्व निभाया।







उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की ओर से त्रिदिवसीय प्रादेशिक नाट्य समारोह की तीसरी और अंतिम शाम बुधवार 19 मार्च को, शाहजहांपुर की नाट्य संस्था गगनिका द्वारा नाटक “भुवनेश्वर-दर-भुवनेश्वर” का मंचन कप्तान सिंह ‘कर्णधार’ के निर्देशन में गोमती नगर स्थित अकादमी के संत गाडगे जी प्रेक्षागृह में किया गया। इस नाटक के लेखक मीराकान्त ने मशहूर साहित्यकार “भुवनेश्वर” के साहित्यिक और सामाजिक संघर्ष को अपने विरले नाट्य शिल्प के ताने-बाने के माध्यम से कुशलतापूर्वक पेश किया है।
सुनील शुक्ला के सधे संचालन में नाट्य समारोह के समापन सत्र में मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी और अकादमी की उपाध्यक्षा विभा सिंह ने दीप प्रज्वलन किया। इस क्रम में मुख्य अतिथि को तरु और शॉल देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उपाध्यक्षा विभा सिंह ने कहा कि अकादमी द्वारा पिछले बासठ वर्षों में नाटक के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया जा रहा है। इस दिशा में बेहतरी के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में इस साल सम्भागीय के बाद प्रादेशिक नाट्य समारोह को आयोजित किया गया। उन्होंने बताया कि अकादमी द्वारा इस साल भी तीन सम्भागीय नाट्य समारोह शाहजहाँपुर, बिजनौर और बरेली में आयोजित करवाए गए। उसके उपरांत उन्हीं तीनों सम्भाग की एक-एक सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति प्रादेशिक नाट्य समारोह में आमंत्रित की गई। इस साल त्रिदिवसीय प्रादेशिक नाट्य समारोह का आयोजन 17 से 19 मार्च तक किया गया। नाट्य प्रस्तुति के उपरांत नाट्य निर्देशक सहित कलाकारों का अभिनंदन भी किया गया।
भुवनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव हिन्दी के प्रसिद्ध एकांकीकार, लेखक और कवि थे। उन्होंने मध्य वर्ग की विडंबनाओं को कटु सत्य के प्रतिरूप में उकेरा है। उन्हें आधुनिक एकांकियों के जनक होने का गौरव भी प्राप्त है। भुवनेश्वर का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में साल 1910 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। ‘ताँबे के कीड़े’ भुवनेश्वर का लोकप्रिय एकांकी संग्रह है। उनका निधन साल 1957 में हुआ था। "भुवनेश्वर-दर-भुवनेश्वर" नाटक के भीतर नाटक की अनूठी परिकल्पना थी जिसमें पात्र के रूप में एक इंसान के भीतर एक दूसरे इंसान के अवतरित होने का यथार्थ चित्रण किया गया था। लेखक के रूप में मीराकांत ने इस नाटक को गहरे चिंतन के बाद मनोवैज्ञानिक ढंग से रचा है।
मंच पर, निर्देशक की भूमिका आजम खां, अभिनेता की मोहम्मद फाजिल खान, अभिनेत्री की सुलोचना कार्की, सज्जाकार की संजीव राठौर, चायवाला की अनुराग शर्मा, राहगीर की शशिभूषण जौहरी और भुवनेश्वर की कप्तान सिंह कर्णधार ने बखूबी अदा की। मंच पार्श्व में अमित देव, दुष्यंत श्रीवास्तव, देवाशीष मिश्रा, रीता जौहरी, सौम्या, चित्राली, शशांक शंखधर और सचिन कुमार का योगदान उल्लेखनीय रहा।





